जब महिलाओं ने अपनी सामाजिक भूमिका को लेकर सोचना, समझना और विचारना आरंभ किया, वहीं से स्त्री आंदोलन, स्त्री विमर्श और स्त्री अस्मिता जैसे संदर्भों पर बात शुरु हुई। स्त्री आंदोलन से जहां एक ओर स्त्रियों की भूमिका को सामने लाने का प्रयास हुआ और उनकी सामाजिक राजनीतिक भागीदारी को स्वीकार किया तो वही स्त्री विमर्श ने स्त्री को केंद्र में लाने का प्रयास किया। जिसमें एक ओर समाज के दोयम दर्जे के स्थिति को बताया तो दूसरी और उससे जुड़े मुद्दे को बहस के जरिए केंद्र में रखा। जिसमें स्वतंत्रता, समानता और अस्मिता जैसे प्रश्न उठे।
जेंडर का प्रश्न अस्मिता के प्रश्न के भीतर उभरता है जो स्त्री को स्त्री के नजरिए से देखने की बात करता है। स्त्री और पुरुष की सामाजिक संरचना पर सवाल उठाकर समाज में बहस की बात करता है।
जेंडर का संबंध एक ओर पहचान से है तो दूसरी ओर सामाजिक विकास की प्रक्रिया के तहत स्त्री-पुरुष की भूमिका से है जहां मनुष्य और मनुष्य के बीच अंतर किया गया और एक एक को स्त्री और दूसरे को पुरुष कहा गया। स्त्री और पुरुष दोनों ही जैविक संरचना है यह सत्य। लेकिन जब इनकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक भूमिका का निर्धारण सिर्फ शाररिक के आधार पर किया जाता है तो इनके स्वतंत्र अस्तित्व पर प्रश्न अंकित हो जाता है, जिसका जवाब जेंडर देता है।
जेंडर हमें स्त्री व पुरुष के निर्धारित सीमा को परिभाषित करने और दुनिया को देखने के नजरिए की नाटकीय भूमिका को बताता है।
जेंडर का संबंध प्रारंभ में भाषा में लिंग अर्थात स्त्रीलिंग , पुल्लिंग और न्यूट्रल जेंडर से रहा है। सामाजिक परिपेक्ष से पूर्व जेंडर का संबंध भाषा से था जो आज भी है। सामाजिक संदर्भ में देखा जाए तो जेंडर का संबंध लिंग(सेक्स ) से है। जिस तरह भाषा में शब्दों का वर्गीकरण के लिए उनके सामाजिक व्यवहार को आधार बनाया गया उसी प्रकार सामाजिक संरचना में लिंग को सामाजिक प्रक्रिया के तहत स्त्री और पुरुष निर्धारित भूमिका में ढाला गया।
जेंडर केवल लिंगों के बीच अंतर को नहीं बताता यह सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्तर पर सत्ता से इसके संबंध को भी परिभाषित करता है।
भारतीय संदर्भ में जेंडर-
निवेदिता मेनन का मानना है कि जेंडर की अवधारणा भारत में पहले से मौजूद थी यह आधुनिक सभ्यता की देन नहीं है बल्कि प्राक आधुनिक भारतीय संस्कृति में विभिन्न प्रकार के यौन पहचान को कहीं अधिक व्यापक का स्थान प्राप्त थे । मतलब उस काल में हिजड़ो के पास भी एक सामाजिक स्वीकार्यता थी जो आज नहीं है। सूफ़ी और भक्ति परंपराएं उभयलिंगीक्ता पर आधारित थी। दो शताब्दी पहले भगवान शिव को उनके बाल और वक्ष देखकर स्त्री , उनके दाढ़ी और मूंछ देखकर पुरुष, लेकिन उनके भीतर जो आत्मा है वह ना तो पुरुष ना ही स्त्री माना जाता था। भारतीय परंपराओं एवं भाषाओं में इस तरह के कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। जो बताते हैं कि लिंग व जेंडर का विचार पहले से मौजूद रहा है।
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जेंडर व सेक्स में अंतर-
जेंडर
1. इसका सम्बन्ध आर्थिक , सामाजिक , राजनीतिक और स्त्री एवं पुरुष से जुड़े अवसर से है।
2. जेंडर समाज के द्वारा लिंग के आधार पर भेदभाव को संदर्भित करता है।
सेक्स
1. इसका संबंध शारीरिक व प्रजनन क्षमता के अनुसार पुरुष और स्त्री के अनुवांशिक रूप से अधिग्रहित अंतर से है।
2. सेक्स वह शब्द है जिसका उपयोग व्यक्ति के यौन रचना को सम्बोधित करने के लिए करते है।
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