हिन्दू धर्म में स्त्री को देवी 'शक्ति' का स्वरुप माना जाता है। स्त्री जिसे हिन्दू धर्म में प्रकृति भी माना जाता है। जब स्त्री शांत हो तो वह प्रकृति की तरह प्रेम, सुंदरता और आकर्षण का प्रतिक बनते हुए सभी जीवो के विकाश में सहायक बनती है। लेकिन जब वो गुस्सा करती है तो मानो सारी सृष्टि ही मिटा देगी. देवी शक्ति (देवी दुर्गा) के नौ रूप है इन्ही नौ रूपों की पूजा 'नवरात्री' कहलाती है।
हमारे ऋषि - मुनियों ने किशोरावस्था से पूर्व, अर्थात दो वर्ष से दस वर्ष तक की बच्चियों में देवी के नौ रूपों को क्रमशः कुमारी ,त्रिमूर्ति,कल्याणी,रोहिणी,कलिका ,चंडिका,शाम्भवी,दुर्गा तथा सुभद्रा -ें नौ नामो से प्रतिष्ठा दी है. उन्होने कन्या पूजन को भी सभी तीर्थो और करोड़ों यज्ञो का फल देने वाला बताया। हां एक बात और है की तंत्र -शास्त्रों में (रुद्रयामल एवं बृहदनिल ) में एकवर्षीय से सोलह वर्षीय तक देवियो का उल्लेख है, पर प्रचलित एवं प्रशस्त परम्परा के अनुसार द्विवर्षीय से दशवर्षीय कुमारियों की पूजा का ही है।
नवरात्र में हो सके तो प्रतिदिन एक , नौ या वृद्धिक्रम (1,2,3,..)या तिगुनी (3,6,9,..) कुमारियों को स्वम माँ का स्वरुप मान कर सदर,स्वप्रेम आमंत्रित करे तथा उनके पाँव पखारकर (पैरो एक थल में रखकर गंगाजल या दूध से अपने हाथों से धोना )विधिवत पूजा कर सुस्वाद भोजन कराये। दक्षिणा देकर और उनकी परिक्रमा कर ससम्मान विदा देनी चाहिए।
इन मंत्रों से सविधि अर्चना की जा सकती है -
1.ॐ कुमायै नमः , 2. ॐ त्रिमूत्यै नमः , 3. ॐ कल्याण्यै नमः ,4. ॐ रोहिण्यै नमः ,5. ॐ कालिकायै नमः ,6.ॐ चण्डिकायै नमः ,7. ॐ शाम्भव्यै नमः ,8. ॐ दुर्गायै नमः , 9. ॐ सुभद्रायै नमः।
'कन्या पूजन' क्या है ?
कन्याओ को देवी माँ का स्वरुप मानकर उनकी पूजा विशेषकर नवरात्री के तरोहर में , सभी नियमो का पालन करते हुए करना 'कन्या पूजन कहलाता है।कन्या पूजा सभी तीर्थो से बढ़कर क्यों है ?
'यावन्न नवमी तावत हवन' अर्थात जब तक नवमी तभी तक हवन , इसलिए हवन से पूर्व ही कुमारी कन्या पूजन शास्त्रों में लिखित है। नवरात्र व्रत के बारे देवी भागवत में कहा गया है की ऐसा कोई दान और व्रत नहीं , और न ही ऐसी कोई पूजा है जिसकी तुलना इससे की जा सके। यह धन, धन्य,सुख ,समर्द्धि,आयु ,आरोग्य एवं मोक्ष दायनी है। यह पूर्व जन्म के दोषो को भी दूर करने वाला है। कन्या पूजन सिर्फ नवरात्री में ही नहीं बल्कि भगवती से सम्बंधित सभी अनुष्ठानो में किया जाता है। इस पूजा का बड़ा महत्व है क्योकि 'स्त्रियः सकला जगत्सु ' अर्थात समस्त संसार की सभी स्त्रियाँ देवी दुर्गा के ही विभिन्न स्वरुप है।हमारे ऋषि - मुनियों ने किशोरावस्था से पूर्व, अर्थात दो वर्ष से दस वर्ष तक की बच्चियों में देवी के नौ रूपों को क्रमशः कुमारी ,त्रिमूर्ति,कल्याणी,रोहिणी,कलिका ,चंडिका,शाम्भवी,दुर्गा तथा सुभद्रा -ें नौ नामो से प्रतिष्ठा दी है. उन्होने कन्या पूजन को भी सभी तीर्थो और करोड़ों यज्ञो का फल देने वाला बताया। हां एक बात और है की तंत्र -शास्त्रों में (रुद्रयामल एवं बृहदनिल ) में एकवर्षीय से सोलह वर्षीय तक देवियो का उल्लेख है, पर प्रचलित एवं प्रशस्त परम्परा के अनुसार द्विवर्षीय से दशवर्षीय कुमारियों की पूजा का ही है।
नवरात्र में हो सके तो प्रतिदिन एक , नौ या वृद्धिक्रम (1,2,3,..)या तिगुनी (3,6,9,..) कुमारियों को स्वम माँ का स्वरुप मान कर सदर,स्वप्रेम आमंत्रित करे तथा उनके पाँव पखारकर (पैरो एक थल में रखकर गंगाजल या दूध से अपने हाथों से धोना )विधिवत पूजा कर सुस्वाद भोजन कराये। दक्षिणा देकर और उनकी परिक्रमा कर ससम्मान विदा देनी चाहिए।
इन मंत्रों से सविधि अर्चना की जा सकती है -
1.ॐ कुमायै नमः , 2. ॐ त्रिमूत्यै नमः , 3. ॐ कल्याण्यै नमः ,4. ॐ रोहिण्यै नमः ,5. ॐ कालिकायै नमः ,6.ॐ चण्डिकायै नमः ,7. ॐ शाम्भव्यै नमः ,8. ॐ दुर्गायै नमः , 9. ॐ सुभद्रायै नमः।
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